देवभूमि में हिमालय की वादियों के बीच एक दुर्गम स्थान उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट नगर से १४ किमी दूरी पर ऐसी गुफा मौजूद है, इस गुफा में धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई प्राकृतिक कलाकृतियां स्थित हैं। जिसके बारे में मान्यता है कि भगवान शिव ने गणेशजी का सिर यहीं काटा था। लेकिन बाद में माता पार्वती के निवेदन पर इसी जगह गणेशजी के धड़ पर हाथी का सिर लगाया गया। यह गुफा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में है। 90 मीटर गहरी इस गुफा में उतरने के लिए 88 से ज्यादा सीढ़ियां बनी हुई हैं, जो कि गुफा की दीवारों से टपकते पानी की वजह से फिसलन भरी रहती हैं। गुफा में प्रवेश करने के लिए 3 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा मुंह बना हुआ है। मान्यता है कि जो यहां श्रद्धापूर्वक आता है, वही इसमें प्रवेश कर पाता है। गुफा संकरी और गहरी होने के कारण आक्सीजन कम हैै जिस कारण वहाँ सांस लेने में दिक्कत आनी लगी।स्कंद पुराण के 'मानस खंड' के 103 अध्याय में भी इस गुफा का उल्लेख है। पुराण में लिखा गया है कि भगवान शिव ने गणेश जी का सिर इस गुफा में उस समय धड़ से अलग कर दिया था, जब उन्होंने शिव को मां पार्वती को मिलने से रोका था। बाद में माता पार्वती के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का सिर इसी गुफा में लगाया गया था। 6736 साल पहले हुई थी इस गुफा की खोज
अयोध्या के राजा ऋतुपर्णा भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने ही इस गुफा की खोज की थी।अगर पौराणिक इतिहास से जुड़ी अलग-अलग किताबों पर नजर डालें तो पता चलता है कि राजा ऋतुपर्णा का साम्राज्य ईसा पूर्व 4720 के आसपास यानी आज से 6736 साल पहले था। इस फिसलन भरे रास्ते से जाना पढ़ता है पाताल भुवनेश्वर की गुफा में। इस गुफा के चारों तरफ घना जंगल है, जहां पर कई खतरनाक जानवर और जहरीले सांप भी रहते हैं।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस गुफा के पास शाम होने के बाद लोगों का आना-जाना बंद हो जाता है।यहाँ मई-जून में यहां काफी भीड़ लगती है, जिसके लिए सुरक्षा के काफी ज्यादा इंतजाम करने पड़ते हैं।
भीड़ वाले दिनों में एक बार में 300-400 लोग गुफा में दर्शन करने जाते हैं, जिसमें कि हर 25-30 लोगों का ग्रुप बनाते हैं और हर ग्रुप के साथ एक गाइड साथ रहता है जो गुफा के बारे में सारी जानकारी देता है। इस गुफा के बारे में कई मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं- कहा जाता है कि पृथ्वी लोक के निर्माण से पहले पाताल लोक में वे सारी घटनाएं पहले ही घटित हो चुकी थीं जो पृथ्वी लोक पर होंगी। यहां मौजूद पूरा ब्रह्मांड, 33 करोड़ देवी-देवता और भगवान शंकर की जटाएं इसी बात का सबूत हैं कि ये गुफा मानव-निर्मित नहीं है। ये किसी दैवी शक्ति की वजह से ही इसका निर्माण संभव हुआ है। शिवजी का त्रिशूल इसी गुफा से होता हुआ कैलाश पर्वत तक गया था और हाथी का सिर लेकर आया था। महर्षि वेद व्यास द्वारा लिखित स्कंद पुराण में बताया है कि पाताल भुवनेश्वर गुफा में ये सिर कटा धड़ भगवान गणेश का ही है। मान्यता है कि आज वो धड़ जीवित अवस्था में है। सिर काटे जाने के बाद भगवान शिव ने ब्रह्मा से कहा था कि वे अपने नाभि-कमल से सिर कटे धड़ पर अमृत गिराएं, ताकि दूसरा सिर आने तक उस धड़ में जान बनी रहे।
पाताल भुवनेश्वर गुफा में भगवान गणेश जी का सिर कटा धड़ है।